बुधवार, 21 अगस्त 2013

धरोहर _ वीरेंद्र मिश्र

धरोहर _ वीरेंद्र मिश्र 

                                                              


हम भी भूखे  , तुम भी भूखे 
दोनों में लेकिन बड़ा फर्क है 
हम रोटियों के , तुम कुर्सियों के ,
क्या है हकीकत , क्या तर्क है 

हम सिर्फ जल हैं , तुम सोमरस हो, 
हर पात्र को यह मालूम है 
तुम जी रहे हो , वो स्वर्ग है 
पर , हम जी रहे जो वो नर्क है _ *****

लघु कथा __ आधुनिक नचिकेता

लघु कथा __ आधुनिक नचिकेता 
                                                  


मंत्रीजी को सोफे पर झपकियाँ आ रहीं थीं कि तभी दरवाजे पर जोरों से खटखटाहट हुयी।  उसने सम्भलकर बैठते हुवे पूछा _ कौन है ? कोई उत्तर न पाकर वह सोफे से उठा।  दरवाजे तक पहुंचा।  

उसके खुलने पर उसने अपने सामने एक नवयुवक को खड़े देखा। झुंझलाहट के साथ उसने पूछा _ कौन हो तुम ? 
आपकी प्रजा।  
क्या नाम है तुम्हारा ? 
नचिकेता।  
मैं आपसे मृयु का रहस्य पूछने आया हूँ।  
तुमने मुझे यमराज समझा है ?

यह कहकर मंत्री ने दरवाजा बंद कर दिया।  खटखटाहट फिर से हुयी।  उसने उसी झुंझलाहट के साथ दुबारा  दरवाजा खोला।  सामने नचिकेता इसी दीन हालत में खड़ा था। 

कहा न मैं यमराज नहीं।  मृत्यु के बारे में नहीं बता सकता। 
तो जीवन के बारे में ही कुछ बता दीजिये।  मंत्री ने नचिकेता को ध्यान से देखा।  

ठीक है भीतर आ जाओ।  एक मिनट बाद।  तुम करते क्या हो ? 
मैं कुछ भी नहीं करता हूँ _ बस पढ़ता हूँ।  
इस समय क्या क्या पढ़ रहे हो ?

कठोपनिषद के बाद सोमरसेट का रेजर्ज एझ पढ़ रहा था।  दोनों की कथाएं एक जैसी हैं।  
दुनिया की सभी कथाएं एक जैसी हैं।  हाँ तो तुम जीवन के बारे में जानना चाहते हो।  
बड़ी कृपा होगी।  

जीवन का मतलब है आगे बढ़ना ___ मतदाता से उम्मीदवार _ फिर नेता , फिर मंत्री _ और प्रधान -
मंत्री -- फिर जीवन का मतलब है -- उससे प्यार पूरी घनिष्ठता के साथ -- जैसे कि अगर कोई सामने 
की इस कुर्सी को चाहने लगो तो आखिरी दम तक इस प्रण को निभाना होगा। 

जीवन का तात्पर्य होता है , अपने साथ- साथ अपने लोगों का हित -- दामादों का , भाई- भतीजों -- जीवन का यह ही मतलब है।  

नचिकेता जो कि सात दिन से मंत्री के यहाँ प्रवेश पाने के लिए दरवाजे पर बिन खाए-पिए पड़ा था -- जीवन  के तात्पर्य की सम्पूर्णता को नहीं सुन सका।  उसके पैर जवाब दे चुके थे।  और वह वहीं जमीन  पर लुढ़क चुका था। ***** ___ अभिमन्यु अनत - मारीशस      
                        

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

संतोष एवं अपरिग्रह

संतोष एवं अपरिग्रह

"साईँ इतना दीजिये जामें कुटुंब समाये। मैं ना भूखा रहूं और साधू भूखा ना जाए। " संतोष एवं अपरिग्रह  ही परम धर्म है। संग्रह से बचने का प्रयास करना चाहिए।  ******

सकारात्मक चिंतन


 सकारात्मक चिंतन





 सकारात्मक चिंतन ही योग है , जो शरीर - मन - आत्मा को परिष्कृत बनाता है।  नकारात्मक सोच से यथा संभव बचना चकिये। 

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सरल जीवन

सरल जीवन 








जीवन जीना बहुत सरल है , पर सरल जीवन जीना बहुत कठिन है। 

नीयत


 नीयत 






जिसकी नीयत सही होती तो उसकी नियति भी सही हो जाती है। 



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धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष







धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष



धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष जीवन के चार उद्देश्य एक दूसरे से सम्बन्ध हैं।  धर्मानुसार अर्थ का उपार्जन और 

उसका सत्कर्म में प्रयोग मोक्ष के द्वार खोलता है। भ्रष्ट आचरण का कोई प्रश्न ही नहीं। 


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